भजन संहिता 86

1. हे यहोवा कान लगाकर मेरी सुन ले, क्योंकि मैं दीन और दरिद्र हूं।
2. मेरे प्राण की रक्षा कर, क्योंकि मैं भक्त हूं; तू मेरा परमेश्वर है, इसलिये अपने दास का, जिसका भरोसा तुझ पर है, उठ्ठार कर।
3. हे प्रभु मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं तुझी को लगातार पुकारता रहता हूं।
4. अपने दास के मन को आनन्दित कर, क्योंकि हे प्रभु, मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूं।
5. क्योंकि हे प्रभु, तू भला और क्षमा करनेवाला है, और जितने तुझे पुकारते हैं उन सभों के लिये तू अति करूणामय है।
6. हे यहोवा मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा, और मेरे गिड़गिड़ाने को ध्यान से सुन।
7. संकट के दिन मैं तुझ को पुकारूंगा, क्योंकि तू मेरी सुन लेगा।।
8. हे प्रभु देवताओं में से कोई भी तेरे तुल्य नहीं, और ने किसी के काम तेरे कामों के बराबर हैं।
9. हे प्रभु जितनी जातियों को तू ने बनाया है, सब आकर तेरे साम्हने दणडवत् करेंगी, और तेरे नाम की महिमा करेंगी।
10. क्योंकि तू महान् और आश्चर्यकर्म करनेवाला है, केवल तू ही परमेश्वर है।
11. हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा, तब मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूंगा, मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं।
12. हे प्रभु हे मेरे परमेश्वर मैं अपने सम्पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम की महिमा सदा करता रहूंगा।
13. क्योंकि तेरी करूणा मेरे ऊपर बड़ी है; और तू ने मुझ को अधोलोक की तह में जाने से बचा लिया है।।
14. हे परमेश्वर अभिमानी लोग तो मेरे विरूद्ध उठे हैं, और बलात्कारियों का समाज मेरे प्राण का खोजी हुआ है, और वे तेरा कुछ विचार नहीं रखते।
15. परन्तु प्रभु दयालु और अनुग्रहकारी ईश्वर है, तू विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करूणामय है।
16. मेरी ओर फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर; अपने दास को तू शक्ति दे, और अपनी दासी के पुत्रा का उठ्ठार कर।।
17. मुझे भलाई का कोई लक्षण दिखा, जिसे देखकर मेरे बैरी निराश हों, क्योंकि हे यहोवा तू ने आप मेरी सहायता की और मुझे शान्ति दी है।।