यशायाह 27
1. उस समय यहोवा अपनी कड़ी, बड़ी, और पोड़ तलवार से लिव्यातान नाम वेग और टेढ़े चलनेवाले सर्प को दण्ड देगा, और जो अजगर समुद्र में रहता है उसको भी घात करेगा।।
2. उस समय एक सुन्दर दाख की बारी होगी, तुम उसका यश गाना!
3. मैं यहोवा उसकी रक्षा करता हूं; मैं क्षण क्षण उसको सींचता रहूंगा। ऐसा न हो कि कोई उसकी हाति करे।
4. मेरे मन में जलजलाहट नहीं है। यदि कोई भांति भांति के कटीले पेड़ मुझ से लड़ने को खड़े करता, तो मैं उन पर पांव बढ़ाकर उनको पूरी रीति से भस्म कर देता।
5. वा मेरे साथ मेल करने को वे मेरी शरण लें, वे मेरे साथ मेल कर लें।।
6. भविष्य में याकूब जड़ पकड़ेगा, और इस्राएल फूल- फलेगा, और उसके फलों से जगत भर जाएगा।।
7. क्या उस ने उसे मारा जैसा उस ने उसके मारनेवालों को मारा था? क्या वह घात किया गया जैसे उसके घात किए हुए घात हुए?
8. जब तू ने उसे निकाला, तब सोच- विचार कर उसको दु:ख दिया : उसे ने पुरवाई के दिन उसको प्रचण्ड वायु से उड़ा दिया है।
9. इस से याकूब के अधर्म का प्रायश्चित किया जाएगा और उसके पाप के दूर होने का प्रतिफल यह होगा कि वे वेदी के सब पत्थरों को चूना बनाने के पत्थरों के समान चकनाचूर करेंगे, और अशेरा और सूर्य की प्रतिमाएं फिर खड़ी न रहेंगी।
10. क्योंकि गढ़वाला नगर निर्जन हुआ है, वह छोड़ी हुई बस्ती के समान निर्जन और जंगल हो गया है; वहां बछड़े चरेंगे और वहीं बैठेंगे, और पेड़ों की डालियों की फुनगी को खो लेंगे।
11. जब उसकी शाखाएं सूख जाएं तब तोड़ी जाएंगी; और स्त्रियां आकर उनको तोड़कर जला देंगी। क्योंकि ये लोग निर्बुद्धि हैं; इसलिये उनका कर्ता उन पर दया न करेगा, और उनका रचनेवाला उन पर अनुग्रह न करेगा।।
12. उस समय यहोवा महानद से लेकर मि के नाले तक अपने अन्न को फटकेगा, और हे इस्राएलियों तुम एक एक करके इकट्ठे किए जाओगे।
13. उस समय बड़ा नरसिंगाा फूंका जाएगा, और जो अश्शूर देश में नाश हो रहे थे और जो मि देश में बरबस बसाए हुए थे वे यरूशलेम में आकर पवित्रा पर्वत पर यहोवा को दण्डवत् करेंगे।।